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Showing posts from October, 2021

( रसोई )

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  ( रसोई ) महंगाई का अजगर रसोई को खा रहा है ! रसोई की थाली से स्वाद  रफ़्ता - रफ़्ता गायब हुआ जा रहा है ! महंगाई का अजगर रसोई को खा रहा है ! पहले कोरोना का रोना  अब महंगाई की मार एक वक्त की रोटी भी है दुश्वार  गरीब और मध्यम वर्ग  असहाय हुआ जा रहा है !  महंगाई का अजगर रसोई को खा रहा है ! वो उज्ज्वला योजना  गरीबों के लिए आपका सोचना  गांवों को शहरों से जोड़ना  वो उज्जवला योजना का सिलेंडर खाली हुआ जा रहा है !  रसोई की वो शान  शो-पीस हुआ जा रहा है !  महंगाई का अजगर रसोई को खा रहा है ! वो बारिश का मौसम  वो गलियों का पानी  वो चाय की चुस्की वो पकौड़ो की कहानी  सब अतीत हुआ जा रहा है !  महंगाई का अजगर रसोई को खा रहा है ! देशी घी न हुआ कभी मयस्सर  सरसों तेल, रिफाइंड कभी डालडा इन्हीं से पड़ा कुनबा पालना सरसों तेल रिफाइंड और डालडा  अब देशी घी हुआ जा रहा है !  महंगाई का अजगर रसोई को खा रहा है ! दाल रोटी सबको मालिक मिलती रहे दाल रोटी सबकी चलती रहे थाली से प्याज भी अब  लुढ़का जा रहा है !  दाल रोटी का मुहावरा  जुमला हुआ जा रहा है ! महंगाई का अजगर रसोई को खा रहा है !  रोजगार पे कोरोना की मार  हर इंसा है बेब

एक नई कहानी की तलाश में

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  एक नई कहानी की तलाश में एक नई कहानी की तलाश तो हमेशा रहती एक लेखक को। मैं भी एक लेखक हूं , रोज कुछ नया लिखना चाहती रोज कुछ नया सोचती। नएपन की खोज लगी रहती। ऐसी ही एक खोज करते करते मैं अपनी कहानी को ही जीने लगी हूं। जो किसी भी खोज से कम नहीं। कभी कभी हम जो खोजते वो हमारे पास ही होता, पर हम दूर दराज खोजने निकल जाते। हमारा अपना जीवन कौनसी किसी कहानी से कम है। हर रोज कुछ नया रंग देखने को  मिलता । हर दिन जिंदगी एक नया रूप  एक नया ढंग, निराला दिखाता। जिंदगी के उतार चढ़ाव इतने है जिंदगी के गम और आसूं इतने है ,जो खुशी से कम ही लगते। कभी अपने आप से ही मायूसी होती। कभी अपना जीवन भी घुटन सा लगता। कितनी ही तकलीफ भरे किस्से मन में दबे है, पर फिर एक नए उमंग नए उल्हास से जीने को आतुर रहते। ये हमारी रोज मर्रा की जिंदगी क्या कहानी से कम है। आपदा और विपदा की जटिल कहानी हर रोज ही जीनी होती हमें। यही मेरी कहानी है मुझे अपनी ही कहानी के नए अंदाज की तलाश है एक नए सुबह के आगाज की तलाश है। By : Poetry Khakholia Mundra Insta I'd: _befikr_lafz

"DEAR PARENTS ( a thing I wanted to tell my parents )

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  NAME : SOMDATTA MITRA  TOPIC: "DEAR PARENTS ( a thing I wanted to tell my parents )  Tranquility prevailed in a serendipity of trepidation. Your care and comfort blurred the pessimisms. While cuddling how wonderfully you embossomed me;  Into a paradise of thoughts and emotions you captivated my innocence and nurtured. How rejuvinated those ecstatic moments were like a divine dip,  The river Ganga seemed to wink. The plethora of affection and love I could behold, The forlorn moments at times rejoiced , Over this distinct manifold as I unfold.  I want to treasure those sequel in an oratory,   And would rewind the lost happiness with a declatory.  Life is incomplete without your presence,  You left me alone in the ferocious world in evanescence. The shattering soul always crave for your bedizen comforts,  Your lap was my own territory of everlasting peace that I still crave for.   Father dear you enlightened my life with an envision, To move fearlessly with courage and vigour. When