Jindgi e jindagi


 

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी,

 तू क्यों नहीं कभी ऐसी हो जाती,

किसी मुस्कान सी, हंसी अरमान सी हो जाती,

था जब वो आसमां सोया,

तूने कितने सितारों को उसके पहलू में पिरोया,

उस तरह से खुशियां तू हर पहलू में क्यों नहीं पिरो जाती,

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी,

तू क्यों नहीं कभी ऐसी हो जाती,

बनके बारिश तू बरसी पर्वतों पर,

मिट गयी थी जो धूल फ़ूल पत्तों पर,

दिलों की धूल तू उस तरह से क्यों नहीं धो जाती,

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी,

तू क्यों नहीं कभी ऐसी हो जाती,

तन्हा सांसों को ख़ामोश धड़कनों को छोड़ कर,

किसी मोड़ पर हर किसी से मुंह मोड़ कर,

इस तरह से अंधेरों में तू क्यों है को जाती,

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी,

तू क्यों नहीं कभी ऐसी हो जाती।


अमित सिंह

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