सुनो न......
तुम्हारी खुशियों को न जाने
कहाँ बसेरा हो गया
जिधर देखा उधर गम
का सबेरा हो गया ......
होंठो पर मुस्कान अब फीकी लाने लगीं हो
हँसी-ठिठोली वाला वक़्त भुलाने लगीं हो ...
हर दिन नई झंझट का झमेला हो गया
बेचैनी का सिलसिला इतना बढ़ा
की तुम्हारे होते हुए भी मैं
अकेला हो गया.....
ढूंढती हैं निगाहें अब भी तेरे प्यार का
पर ...
वो ग़म का ज़माना हमारा हो गया
तुने दर्द इतना दि की वो मरहम भी
पुराना हो गया.....
हमें इतना सताना तुम्हें आम बात हैं लगता
करतीं थी पहले मिठ्ठी बातें
अब वो बेगाना लगता हैं
अपने रिश्ते को तोड़ कर जाना
हर बात मुझें ख़लता है......
अब छोड़ों भी....
नफरतों का मन में विष क्यूँ घोलती हो
हर लम्हा बोझिल सा है आजकल
पर तुम क्यों न कुछ बोलतीं हों
जो खाई थी कसमें - बादें
उसे क्यों भूल गई
जो दिल बातें थी दिल में रखतीं
उसे तुम क्यों बोल गई.......
मतलबी इतनी हो गई की अब
सर चढ़कर डोलने लगीं
दिल की बातें थीं
जो तुने
औरों के कहने पर बोलने लगीं......
प्रिंस राज वर्मा
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